पत्रकार-अर्पित हरदेनिया। सुसनेर: मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद द्वारा संचालित मुख्यमंत्री सामुदायिक नेतृत्व एवं क्षमता विकास पाठ्यक्रम की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। इस योजना का उद्देश्य युवाओं में नेतृत्व क्षमता विकसित कर उन्हें सामाजिक परिवर्तन का वाहक बनाना है। लेकिन सुसनेर में इसके क्रियान्वयन को लेकर गहरी अनियमितताएं है। परिषद द्वारा नियुक्त किए गए कई परामर्शदाता अपात्र हैं।नियमानुसार इस पद के लिए समाज कार्य, सामाजिक विज्ञान या ग्रामीण विकास में डिग्री और कई वर्षों का क्षेत्रीय कार्य अनुभव आवश्यक है। लेकिन कई नियुक्त व्यक्ति न तो विषय विशेषज्ञ हैं। न ही उनके पास किसी प्रकार का शैक्षणिक या कार्यानुभव है। सूत्रों के अनुसार यदि इस मामले की गंभीर और निष्पक्ष जांच कराई जाए तो नियुक्तियां नियमों के उल्लंघन की श्रेणी में आ सकती हैं। इससे स्पष्ट है कि चयन प्रक्रिया में गंभीर लापरवाही या पक्षपात बरता गया है।
हर रविवार को मिल रहा भुगतान, कक्षाएं केवल नाम की:-
इस पाठ्यक्रम के अंतर्गत प्रत्येक रविवार को 5 संपर्क कक्षाएं आयोजित की जानी थीं। लेकिन छात्रों की कम उपस्थिति के कारण सिर्फ 2 कक्षाएं ही संचालित हो रही हैं। बावजूद इसके परिषद द्वारा परामर्शदाताओं को 2000 प्रति रविवार के मान से भुगतान किया जा रहा है। यह स्थिति न केवल शैक्षणिक गुणवत्ता पर प्रश्नचिह्न खड़े करती है। बल्कि सरकारी धन के दुरुपयोग की भी आशंका को जन्म देती है।
छात्रों का भविष्य अधर में, समाज में बढ़ता आक्रोश:-
ग्रामीण अंचलों से आने वाले युवाओं को जब मार्गदर्शन देने वाले प्रशिक्षक ही अयोग्य हों, तो इस योजना का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है। कई छात्रों और अभिभावकों ने चिंता जताई है कि इस तरह की अनियमितता से न केवल समय बर्बाद हो रहा है बल्कि भविष्य भी खतरे में है।
जनकल्याण की योजना में अपात्रों को जगह देना छात्रों के साथ अन्याय है। जांच होनी चाहिए और दोषियों पर कार्रवाई भी ऐसा कहना है एक वरिष्ठ स्थानीय शिक्षाविद का।
जांच और जवाबदेही की उठी मांग:-
स्थानीय जनप्रतिनिधियों, नागरिकों और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों ने परिषद और जिला प्रशासन से संपूर्ण नियुक्ति प्रक्रिया की जांच कराने की मांग की है। साथ ही यह भी आग्रह किया गया है कि नियमविरुद्ध तरीके से नियुक्त व्यक्तियों को हटाया जाए और नियुक्ति में संलिप्त अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए।
यदि समय रहते इस ओर ठोस और पारदर्शी कदम नहीं उठाए गए तो यह योजना केवल कागज़ों तक सिमट जाएगी और सरकार की जनहितकारी छवि को गहरा नुकसान हो सकता है।
इनका कहना:-
मैं जांच करवाता हूँ। यदि जांच में पीजी नहीं पाई जाती है, तो उसे हटाने की कार्रवाई की जाएगी।
– देवेंद्र शर्मा,
जिला समन्वयक, आगर