"कर्म करो तो ऐसा करो कि उसकी खुशबू तुम्हारी नीयत से ज़्यादा हो।"
यह विचार हमें सिखाता है कि हमारे कार्यों का महत्व केवल उनके परिणाम में ही नहीं, बल्कि हमारी सच्ची और नेक इरादों में भी निहित होता है। जब हमारी नीयत शुद्ध होती है, तो हमारे कर्म अपने आप ही दूसरों के लिए सुख और संतोष का कारण बनते हैं।
"कर्म करो तो ऐसा करो कि उसकी खुशबू तुम्हारी नीयत से ज़्यादा हो।"
यह विचार हमें सिखाता है कि हमारे कार्यों का महत्व केवल उनके परिणाम में ही नहीं, बल्कि हमारी सच्ची और नेक इरादों में भी निहित होता है। जब हमारी नीयत शुद्ध होती है, तो हमारे कर्म अपने आप ही दूसरों के लिए सुख और संतोष का कारण बनते हैं।